Mar 31, 2025

Jawani ki Bakwas

 
ओय! नौकरी लग गयी भाई 
अब तो ऐश ही ऐश होगी 
तीनों दोस्त अपनी अपनी बाइक लेंगें 
ट्रिपलिंग फिर भी एक पे होगी 

फ्लैट ना एकदम बढ़िया वाला लेंगें 
पूल तो होगा ही, और रूफटॉप भी चाहिए 
और जिम तो मस्ट ही मस्ट है 
बॉडी बनाएँगे भाई, बंदी भी तो चाहिए 

बहुत हुए कैंटीन के ब्रेड पकोड़े 
पहली सैलरी आएगी ना, फाइन डाइनिंग चलेंगें 
उससे पहले एक छोटा सा डेटौर
चढ़ावा देने मंदिर भी चलेंगें 

और ट्रिप्स तो क्या क्रेज़ी होंगी भाई 
बीच पहाड़ फॉरेन सब कवर कर डालेंगें 
ढंग की जगह पे रुकेंगें प्लीज़
टौर टशन हो, इंस्टा पे रील भी तो डालेंगें 

अच्छा काम पे भी फोकस करेंगें हाँ 
एक साल में ऑनसाइट, दो साल में प्रोमो 
लिंक्डइन पे लोकेशन सान फ्रांसिस्को
और अपने सरे बैच वालों को फोमो 

सालों जब शादी करोगे ना 
तब ओल्ड मोंक नहीं चलेगी 
और जब तक तीन घंटे डांस ना हो 
मैं बता रहा हूँ, बारात नहीं हिलेगी 

फिर तो बाल-बच्चों वाले बन जाएंगे भाई 
बड़े आदमी बनके सीरियस वीरियस मत हो जाना 
हाँ हाँ पता है हम बड़े हो रहे हैं 
पर यार, लाइफ की रेस में, दोस्त को मत भूल जाना 

Mar 29, 2025

Tu Kahe Toh

 
तू कहे तो चाँद ला दूँ
तू कहे तो तारे भी
तू कहे तो काली छा में
बिन दूँ जुगनू सारे भी

तू कहे तो धूप छानूँ
दे दूँ तुझको प्याले में
तू कहे तो रंग सातों
डाल दूँ तेरे थाले में

तू कहे तो साज़ बाँधूँ
सुर सजा दूँ गाऊँ भी
जल उठें फिर बुझ भी जाएँ
दीप हो मल्हार भी

तू कहे तो उड़ भी आऊँ
तू कहे तो बह चलूँ
तू कहे तो अड़ ही जाऊँ
तू कहे तो ढह चलूँ

तू कहे तो एक बस है
तू कहे तो सब कमी
तू कहे, जो भी कहे तू
तेरे तो हैं बस हमीं

Feb 22, 2025

Yaadon ka box

    आज यादों का बक्सा खुला है। बचपन निकला है। कुछ पुरानी किताबें, पंचतंत्र, और चाचा चौधरी। मेरी छोटी सी गुड़िया, रंगीन धागे, प्यारे से बटन, छोटे भाई के तमगे। घिसी हुई लूडो और फोटो रील की डब्बी में गीटियाँ। याद है वो कितने जूनून से खेलता था? और हारने पे तिनक के बैठ जाता था। तब देखकर गुस्सा आता था, आज सोचकर हँसी आती है। हाय, प्यारा से बच्चा। अरे! ये छोटी सी डिबिया में क्या है? प्लास्टिक के नन्हे सितारे जो मैं कॉपियों में चिपकाया करती थी। और एक मोती जैसा दिल वाला लॉकेट जो मुझे पार्क से घर के रस्ते में गिरा हुआ मिला था। उफ़ वो दिन! माँ सब्ज़ी लेने गयी थी और चाबी मेरे पास थी। कूदते फाँदते घर आते चाबी कहाँ गिरी मुझे पता ही नहीं चला। उस रात दरवाज़े के चबूतरे पर हमने ताला तोड़ने के इंतज़ार में दो घंटे काटे थे। पर मज़ा आया था। पड़ोस के बच्चे और आंटियाँ आ गयीं थीं, खूब गप्पे और पकड़म पकड़ाई का सिलसिला चला था।

    एक छोटा सा दस्ताना भी है जो दादी ने मेरे लिए बुना था। उसे छूते ही जैसे मैं पानीपत वाले घर पहुँच गयी। सर्दियों की साँस, मुलायम धूप, और छत पे मूँगफलियाँ। दादी संतरे भी छील के देती थी। मैं और मेरी कज़िन छत पे स्टैपू खेलते और दादा के स्कूल से आयी किताबों में कहानियाँ पढ़ते। ताऊजी कितने मज़े कराते थे। शाम में सब बाजार जाके गोल गप्पे और रबड़ी-फालूदा खाते थे। कितना प्यार करते थे।

    एक दिया है जो मैंने पेंट किया था। दिवाली पे मम्मी क्या कमाल के गुलाब जामुन बनाती थी और पूजा में पापा हम सब बच्चों के साथ पीछे बैठ के शरारत करते थे। खैर…अब ना दादा दादी हैं, ना बचपन है। पर आज दिवाली तो है। पूजा में दादी वाला जयकारा लगेगा। गुलाब जामुन भी बनेंगे, शरारत भी होगी। यार-दोस्त आएंगे, किस्से ठहाके लगेंगे। नयी रस्में, नयी यादें। यादों का बक्सा जब दुबारा खुलेगा, तब इन यादों को देखेंगे। 

Jan 13, 2025

Chali Aa

 

बन कर हवा, मेरी जान
कर धुआँ सब तू चली आ
तू है नदी, ऐ हंसीं
क्यूँ रूकी बह तू चली आ

आ जा सनम
हैं वहाँ थे जहाँ हम
तोड़ सब बंदिशें तू
आ अब तो चली आ

खिल जो चली, ऐ कली
गुल चमन सी तू चली आ
उजली किरण करे रोशन
सहर अब ला तू चली आ

आ जा सनम
हैं वहाँ थे जहाँ हम 
छोड़ सब रंजिशें तू 
आ अब तो चली आ