Jun 13, 2019

Raahein

ये राह जो चली हूँ मैं
ये राह बड़ी अजीब है
जिस चाह पे अड़ी हूँ मैं
वो चाह क्यूँ विलीन है
कोशिशों से दरखास्त है
यत्न का असर तो हो
सफ़र से ये आस है
कभी सफ़र का अंत हो
कितनी जीतों को हार कर
इस निशा की सुबह तो हो
चलती चलूंगी राह पर
पर राह में दिशा तो हो 

1 comment:

  1. बिलकुल होगी! हर निशा की सुबह निश्चित है!

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